Wednesday, August 22, 2012

Sometimes its good to speak the Truth..face whatever you are hiding within.to Yourself..this poem is a mirror of the times I would like to hide from my life.......

3rd August 2012
8:20 am
शैतान 

मन का शैतान
मुझे सोने नहीं देता
मेरे चेतन पे हावी हा क्षण
नसों में दौड़ता विलक्षण
अपनी विकरालता ये
खोने नहीं  देता ...

          सावन भी दिखता पतझड़ सा
          बाग़बा भी दिखता मरुस्थल सा
          लोगो के चेहरों में
          हैवानो  का भाव
          सपनो में भी मुझे कर पराजित
          अपनी हार पे   रोने नहीं  देता....

ये अविरल बढ़ता
भीषण होती विभत्सता
मेरे मानस को नित
भस्मीभूत   करता
चला जा रहा
चलता ही जा रहा
      
          मै निर्बल सी , आहत मन
          अवलंब रहित
          देखती हू , अश्रु सहित
          खुद को उस से हारते
          अपनाती जा रही हु
          उसकी अमानुषता

मुझसे ऐसे चिपका, बनाया यही मेरे जीने का ढंग
मुझमे  मुझसा कुछ बाकी न रहा, चढ़ा है बस शैतान का रंग
    


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