Friday, February 28, 2014

विदाई - Dedicated to all women...


This is the outpour of that emotional moment when after marriage you recall your childhood with your siblings...

विदाई

हो गई विदाई ,
चारों ओऱ शोर है
खुशियाँ फैली सबके मुख पर
भीगी क्युँ मेरी पलकों की कोर है

सारा जग नाचे ऐसे
सावन में जैसे मोर है
रौशनी से हर कोना चमके
मन में फिर क्युँ ,तम इतना घनघोर है    

अनजाने हैं रिश्ते सारे
घेरे मुझे मुस्काते चेहरे
पैरों को फिर भी खींचे
बचपन क्युँ अपनी ओर है

दीदी नहीं बुलाती मुझको
बहना नहीं चिढ़ाती मुझको
भैया मेरे संग ही रहना
तू तो मेरी ओर है

पापा मुझको रोक लो ना
मम्मी मुझको मत छोड़ो न
पल में सौंपी परदेसी को
प्रेम कि जाने कैसी ये डोर है

अब मै  समझी , माँ
कैसे तुम मेरे पास आई
फिर भी मन मेरा है व्याकुल
तुमपे नहीं क्युँ पहले सा मेरा ज़ोर है

जीवनसाथी के साथ चली मै
तुम्हारी मर्ज़ी मान चल मैं
रीत नाम से करता ठगी ये
जीवन भी कैसा चोर है । …………