Saturday, August 13, 2016

वीर


                                             

On the eve of Independence day....

फिर से खेतों की सरसों पर
मतवाली पवन लहराई 
फिर से नदियों की लहरें
मचल मचल इठलाईं
फिर जोश आ गया खून में
नसें तन तन के चिल्लाईं
आज फिर देश पे
जान देने की ऋतु आई

कोई लक्ष्मण नहीं तोड़ेगा
आज राम का वचन
एक बूँद भी रक्त की
जब तक इस तन में शेष है
प्राणों के कण कण में
जब तलाक आवेश है
छू ना सकेगा कोई रावण
मेरी माँ, मेरा वतन !

आओ कर लें ये प्रण
मातृभूमि को कर के नमन
इस काल , बनके काल
काट के चक्रव्यूह के जाल
हर अभिमन्यु होगा पार
भारत माँ के चरणों में
न्योछावर कर अपना प्यार
देगा सर्वस्व वार

शहीदों की चिताओं पे रोके
तुम त्याग का अपमान न करना
वो छोड़ गए?... पर कहाँ गए?
वो दिलों में प्राणित  रहतें हैं
देखो इस पावन मिटटी में
जीवन के रूप से रहतें हैं
इस देश की नदियों में
अमृत बन के बहते हैं

वो अपनों की आँखों में
गर्व से चमकते हैं
ये भारत है दुनियावालों
लहू नहीं देशप्रेम के जज़्बे
यहाँ नसों में बहते हैं
प्राणों की आहुति देकर
कण कण की हिफाज़त करते हैं
इन्ही इरादे से नए वीर फिर बनते हैं ! 



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