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Saturday, June 27, 2015

मायका- dedicated to all married woman

मायका

Dedicated to all married women who not only change their home after marriage, they create a home for their life partner. This is this supreme sacrifice which makes a woman reverent as only she knows what she lets go off for her family and nothing can fill or replace the emptiness thus created. The place of her parents home or her birth home.

मायका

छूटी है माँ की लोरी
उसकी राह तकती आँखें
छूटा पापा का दुलार
और बचाये गुस्से से जब वो झाँकें
मुश्किल बडा है फिर से....
किसी को माँ बाप कहना

खेलती कूदती गलियाँ छूटी
छूटी है परियों सी गुडिया
छूटा सखियों का साथ
शरारत की वो पुडिया
सारे रेशम ले ले....
दे कोई बचपन पहना

छूटा है खुला आसमान
जिसमे पँछी सा उडता मन हर पल
बाँध नही था आँखों पे
बहते थे सपने कल कल
आज खुद ही रखा पिजँरे  मे...
खुद के मन की मैना

छूटा है यहाँ तुम्हारा मन ओ बहना
रख लो सब जायदाद
पहन लो सारा गहना
मिले न कहीँ मन को चैना
मायका तो मायका....
उसका क्या कहना !!


Monday, August 6, 2012

This is one of my old poems, I love this one...

साथी

अनजाने मन को मेरे, ये बढ़ा दिया है किसने हाथ
हौले से कर दिया ये वादा, सुख दुःख में हम देंगे साथ

आज अचानक किसने ये , अँधेरे में ज्योति जलाई
अब तो निश्चलता में भी,  चंचलता पड़ती दिखाई

मेरे सूनेपन की अमावस्या में, किसने आ दिवाली मनाई
डाला है किसने इस मन में, जीवन का ये नया आभास

आँखों की मृदुल भाषा से, किसने बोले ये संवाद
दुखी मन तू भी चख ले, जीवन का ये मीठा स्वाद