This is one of my favorite poems and its priceless too.Why? because its written by my father. So now you know the genealogy of the poetic talent I received! Read on and sooth your poetic heart as I do..
टूटे पंख पसारूँ कैसे !
बाँध धैर्य का टूट चुका है
कब तक धीर धराओगे
प्रेम राग का बीन बजाकर
कब तक मुझे सुनाओगे
उमड़ रहे हैं आँसू मेरे
तुमको हाय ! निहारूँ कैसे
पड़े हुएं हैं इस उलझन में
टूटे पंख पसारूँ कैसे !
तरस न खाओ मेरे ऊपर
सहानुभूति न दिखलाओ
झूटी हँसी ,भुलावा देकर
दिल न मेरा बहलाओ
सूख चुके हैं आँसू मेरे
उनको हाय निकारूँ कैसे
पड़े हुएं हैं इस उलझन में
टूटे पंख पसारूँ कैसे !
-उत्सुक
उलझन
पड़े हुएं हैं इस उलझन मेंटूटे पंख पसारूँ कैसे !
बाँध धैर्य का टूट चुका है
कब तक धीर धराओगे
प्रेम राग का बीन बजाकर
कब तक मुझे सुनाओगे
उमड़ रहे हैं आँसू मेरे
तुमको हाय ! निहारूँ कैसे
पड़े हुएं हैं इस उलझन में
टूटे पंख पसारूँ कैसे !
तरस न खाओ मेरे ऊपर
सहानुभूति न दिखलाओ
झूटी हँसी ,भुलावा देकर
दिल न मेरा बहलाओ
सूख चुके हैं आँसू मेरे
उनको हाय निकारूँ कैसे
पड़े हुएं हैं इस उलझन में
टूटे पंख पसारूँ कैसे !
-उत्सुक
Wow bohot hi khubsurti se piroya gaya hai... very heart touching line..
ReplyDeleteshort of words.....d depth of each word is just so appropiate.....
ReplyDeleteYes di, Thats why #priceless!
DeleteWonderfully written! True!
ReplyDeleteThanks Saumya, you will get more, watch this space...
Delete